मत गुहार दो मेरी लेखनी को
क्यूंकि ज्वालामुखी की आग में रोटियाँ नहीं सिंकती।
क्यों चाहते हो बेवजह सनसनी हो?
समाज के मद्ध्यम भाग में क्रांतियाँ नहीं टिकती।
गांधी के तीन बंदरों के आज जब मायने बदल गए हैं
आँख, शब्द, कान ये मेरे, बाकायदा सम्हाल गए हैं।
तब बातें कड़वी सच्ची थी क्योंकि अक्ल ज़रा सी कच्ची थी
अब बोली नमकीन और टुच्ची है, पर बटुए में गर्मी अच्छी है।
मेरा आक्रोश आजकल ज्यादाकर एक ट्वीट बनता है
बचाकुचा फेसबुक स्टेटस या दिमाग का कीट बनता है।
मैंने ही कलम फ़ेंक दी है कहीं
क्यूंकि बाग़ी शब्द सिर्फ पन्नों तक नहीं थमते।
मत जगाओ सोये आवेग को मेरे
ये मिजाज़ महासागर है, इसपर बाँध नहीं बंधते।
क्यूंकि ज्वालामुखी की आग में रोटियाँ नहीं सिंकती।
क्यों चाहते हो बेवजह सनसनी हो?
समाज के मद्ध्यम भाग में क्रांतियाँ नहीं टिकती।
गांधी के तीन बंदरों के आज जब मायने बदल गए हैं
आँख, शब्द, कान ये मेरे, बाकायदा सम्हाल गए हैं।
तब बातें कड़वी सच्ची थी क्योंकि अक्ल ज़रा सी कच्ची थी
अब बोली नमकीन और टुच्ची है, पर बटुए में गर्मी अच्छी है।
मेरा आक्रोश आजकल ज्यादाकर एक ट्वीट बनता है
बचाकुचा फेसबुक स्टेटस या दिमाग का कीट बनता है।
मैंने ही कलम फ़ेंक दी है कहीं
क्यूंकि बाग़ी शब्द सिर्फ पन्नों तक नहीं थमते।
मत जगाओ सोये आवेग को मेरे
ये मिजाज़ महासागर है, इसपर बाँध नहीं बंधते।
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