फिर बिस्मिल्लाह की शहनाई से जागें
फिर मालकौस पर सर रखकर काटें रात।
सुबह जब क्षितिज पर पर फैलाए
रतजगे की उबासी से आँखें सहलाएं।
फिर शिमुल के फूलों के पीछे दौडें
कागज़ की नावों पर तैराएँ बरसात।
सागर की गहराई नापें आंखों से
मुंदी पलकों पर रखें तारे
दिनों पर फिर कोरा कैनवास टांगें
भूले हुए रंगों से फिर करें शुरुआत।
Sunday, August 17, 2008
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