जनाप्लावित प्लेटफोर्म पर
हठात मद्धम होता है अगिनत प्रलापों का स्वर
एकांत हाथ रखता है हाथ पर।
समय धीमे बहता है
स्मृतियों का प्लावन लिए।
मौन विलाप करता है।
सुनता है शून्य -
अनसुनी पदचापों का स्वर
निरंतर....
एकांत हाथ रखता है हाथ पर।
रात्री की कालिमा क्रमशः
गहराती है प्रति पहर।
प्रतिपल विकसित होता है
अन्तरिक्ष का एकाकी विवर।
अन्तरिक्ष के फैले विवर में
ऊंचा उठता है झींगुर का एकाकी स्वर।
एकांत हाथ रखता है हाथ पर।
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