Saturday, August 23, 2008

एकांत

ट्रेन पकड़ने की जद्दोजहद के बीच
जनाप्लावित प्लेटफोर्म पर
हठात मद्धम होता है अगिनत प्रलापों का स्वर
एकांत हाथ रखता है हाथ पर।


समय धीमे बहता है
स्मृतियों का प्लावन लिए।
मौन विलाप करता है।
सुनता है शून्य -
अनसुनी पदचापों का स्वर
निरंतर....
एकांत हाथ रखता है हाथ पर।


रात्री की कालिमा क्रमशः
गहराती है प्रति पहर।
प्रतिपल विकसित होता है
अन्तरिक्ष का एकाकी विवर



अन्तरिक्ष के फैले विवर में

ऊंचा उठता है झींगुर का एकाकी स्वर।
एकांत हाथ रखता है हाथ पर।

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