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Friday, March 20, 2009

आत्मविश्लेषण

अभय दो!
मणिहीन तमस से
विवेक के कारागार से
मुक्त करो!
प्रभंजन कंचुली से
विषाक्त सर्पों की देह तुष्ट हो।
आत्ममन्थन की प्रताड़ना दुष्कर
श्रापित दान
क्षय हो कुरूप दर्पण !
दो मुक्ति का सोपान।